भ्रमरगीत सार - आचार्य रामचंद्र शुक्ल

भ्रमरगीत सार

Por आचार्य रामचंद्र शुक्ल

  • Fecha de lanzamiento: 2016-12-13
  • Género: Crítica literaria

Descripción

भ्रमरगीत सार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित हिन्दी ग्रन्थ है। सूरसागर सूरदासजी का प्रधान एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें प्रथम नौ अध्याय संक्षिप्त हैं, पर दशम स्कन्ध का बहुत विस्तार हो गया है। इसमें भक्ति की प्रधानता है। इसके दो प्रसंग 'कृष्ण की बाल-लीला’और 'भ्रमरगीत-प्रसंग' अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। आचार्य शुक्ल ने लगभग 400 पदों को सूरसागर के भ्रमरगीत से छांटकर उनको 'भ्रमरगीत सार' के रूप में संग्रह किया था। भ्रमरगीत में सूरदास ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को ब्रज संदेश लेकर भेजते हैं। उद्धव योग और ब्रह्म के ज्ञाता हैं। उनका प्रेम से दूर-दूर का कोई सम्बन्ध नहीं है। जब गोपियां व्याकुल होकर उद्धव से कृष्ण के बारे में बात करती हैं और उनके बारे में जानने को उत्सुक होती हैं तो वे निराकार ब्रह्म और योग की बातें करने लगते हैं तो खीजी हुई गोपियां उन्हें 'काले भँवरे' की उपमा देती हैं।