विश्वप्रपंच - आचार्य रामचंद्र शुक्ल

विश्वप्रपंच

Por आचार्य रामचंद्र शुक्ल

  • Fecha de lanzamiento: 2016-12-13
  • Género: Filosofía

Descripción

विश्व प्रपंच भाग २ आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा अनुदित विचारपरक निबंध संग्रह है। इस पुस्तक के मूल लेखक जर्मन दार्शनिक हेगेल हैं, जिन्होंने रिडल आवर यूनिवर्स नाम से इस पुस्तक की रचना की थी। इस संग्रह में आत्मा, प्रकृति और परमतत्व, जगत का विकास, ईश्वर और जगत, ज्ञान और विश्वास, विज्ञान और ईसाईयत तथा जगत के रहस्य जैसे गूढ़ दार्शनिक विषयों पर चर्चा की गई है। इस रोचक सृष्टि के निर्माण की कथा भी बहुत रोचक है। प्रारंभ से भाववाद और भौतिकवाद नाम की दो धाराएँ चलती चली आ रही हैं। सम्पूर्ण विश्व में उपरोक्त विषयों पर जितनी भी चर्चाएँ हुई या होती हैं सभी इन्हीं दोनों धाराओं से आबद्ध हो कर चलती है। इन चर्चाओं के द्वारा परमतत्व की खोज ही चर्चाकर्ताओं का उद्देश्य रहा है। कुछ के विचार से ‘जो कुछ समष्टि रूप में है उसकी सत्ता सदा रहेगी, यही परमतत्व है।’ और कुछ के अनुसार ‘मैं सोचता हूँ इसलिये मैं हूँ।’ जैसा की देकार्त ने भी कहा था। लेखक ने अपनी मीमांसा में वैज्ञानिकता को महत्व दिया है और प्रकृति से आबध्य निर्माण को श्रेष्ठ बताया है। उनके अनुसार ‘सच्चे ज्ञान का आभास प्रकृति में ही मिल सकता है।’ चूँकि प्रकृति नित्य परिणामी है, वह सदा परिणाम की प्रतीक्षा में रहती है। इसलिये गत्यात्मकता ही सृष्टि का सार है और इसी गति सौन्दर्य की राह चल कर परमतत्व तक पहुँचा जा सकता है। लेखक ने आदि से अब तक के सृष्टि यात्रा की बहुत सूक्ष्म पड़ताल की है। नि:संदेह उनकी इस पड़ताल से बहुत कुछ जानने को मिलता है। शुक्ल जी जैसे विद्वान ने इस गम्भीर पुस्तक का अनुवाद कर हिन्दी समाज को एक महत्वपूर्ण तथ्य से परिचित कराया है।